वैद्य पं0 योगेश देव पाण्डेय
प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नव ग्रहों के संयोग का प्रभाव सम्पूर्ण पृथ्वी मण्डल पर पड़ता है और पृथ्वी पर निवास कर रहे हर एक जीव जंतु प्राणियों पर प्रकृति पर्यावरण सहित इसका विशेष प्रभाव स्वभावतः विशेष रूप से है। इसी बात को समझनें के लिए सम्पूर्ण विश्व में अनेकों ऋषि मुनियों, गनीतिज्ञों, वैज्ञानिको ने अपने – अपने अनुसार गणितीय सूत्रों संहिताओं के अनुसार वर्णन किया हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस धरती पर रहने वाले मनुष्यों के जन्म कुंडली निर्माण के लिए जन्म का दिनांक/ तिथि, वार, समय व स्थान अक्षांश के आधार पर अत्यंत महत्व पूर्ण है, इस के समय इत्यादि अनुसार सम्पूर्ण जीवन का भी गणितीय आधार पर बड़े- बड़े ग्रन्थों में सम्पूर्ण विवरणों का वर्णन किया गया है। इसी क्रम को और समझनें के लिए मानव जीवन से जुड़ी हर समस्याओ लाभ एवं हानि को भी जन्म कुंडली के अनुसार बताया गया है की जन्म कुंडली मे कौन सा ग्रह आपके जीवन में क्या प्रदान कर रहा है ? जन्म कुंडली में ग्रह किस भाव, लग्न, राशि, आदि में विद्यमान है ? या किस राशि में उच्च नीच स्वगृही या किस के घर मे बैठा है, इत्यादि बहोत सी ऐसी स्थितयां हैं जिनके आधार पर आपकी सभी समस्याओं व लाभ हानि को सरलता पूर्वक जाना जाता है जैसे :-

जन्म कुंडली में कौन सा ग्रह उच्च या नीच राशि में विद्यमान है और क्या है जातक पर उसका फल आइये इसे समझते हैं –

महाधनी महोग्रश्च तुंगस्थे भास्करे नरः ।। सुभूषणो महाभोगी धनो तुंगे निशाकरे ॥ उच्चे मौमे सुपुत्रश्च तेजस्वी गर्वीतो नरः ।। मेधावी दृढवाक्यश्च बला- ढचश्च बुधे भवेत् ॥ राजपूज्यश्च विख्यातो विद्वानार्यो गुरौ नरः ।। स्वोच्चे शुक्रे विलासी च हास्यगीतादिसंयुतः ।॥ स्वोच्चगे रविपुत्रे च चक्रवर्ती धनी भवेत् ।। राजलब्धनियोगश्च राहुः शनिसमो मतः ॥

अर्थात :-
1 :- जन्म कुंडली मे यदि सभी ग्रहों के राजा सूर्य उच्च राशि के हों तो जातक महाधनी व सभवतः महाउग्र होत है।

2 :- चंद्रमा उच्च राशि के हों तो जातक सुंदर , आभूषणोंवाला, भोगी, धनी, होता है।

3 :- मंगल उच्च राशि के हों तो जातक सुंदर पुत्रों वाला, तेजस्वी, अभिमानी व्यक्ति होता है।

4 :- बुध उच्च राशि के हों तो जातक बुद्धिमान्, दृढ वाक्य वाला, बलवान होता है।

5 :- बृहस्पति उच्च राशि के हों तो जातक राजपूज्य, विख्यात, विद्वान् श्रेष्ठजन होता है।

6 :- शुक्र उच्च राशि के हों तो जातक विलासी (भोगी) हास्य, गीत आदिकों में लगा रहता है।

7 :- शनि उच्च राशि के हों तो जातक चक्रवर्ती राजा, घनी, व राजा से लब्ध (प्राप्त) अधिकार वाला होता है।

8 :- राहु व केतू उच्च राशि के हों तो उनका फल जातक के लिए शनि के समान जानना चाहिए।
यह तो था जन्म कुंडली में ग्रहों के उच्च राशि में होने का फल इसी प्रकार जन्म कुंडली में ग्रहों के नीच भी निर्धारित हैं उनके नीच राशि मे होनें का क्या फल होता है आइये इसे भी जान लेते है।

जन्म कुंडली में कौन सा ग्रह नीच राशि में विद्यमान है और क्या है जातक पर उसका फल आइये इसे समझते हैं –

नीचे सूर्ये भवेत्प्रेष्यो बंधुभिर्वजितो नरः ।। चंद्र रोगी स्वत्पपुण्यो दुर्भगो नीचराशिगे ।। नीचे भौमें भवेन्नीचः कुत्सितो व्यसनातुरः ।। बुधे क्षुद्रो बंधुर्वेरी गुरौ दीनो दरिद्रश्च गताचारोऽतिगर्हित:।।

अर्थात :-
1 :- जन्म कुंडली मे यदि सभी ग्रहों के राजा सूर्य नीच राशि के हों तो जातक सेवा करने वाला, भाइयों से त्यागा हुआ होता है।

2 :- चंद्रमा नीच राशि के होवें तो जातक रोगी, स्वल्प पुण्यवाला, कंगाल होता है।

3 :- मंगल नीच राशि के हों तो जातक नीच, कुत्सित व व्यसनवाला होता है।

4 :– बुध नीच राशि के हों तो जातक तुच्छ जन, बंधु जनों से वैर करने वाला होता है।

5 :– बृहस्पति नीच राशि के हों तो जातक दीन हीन मलिन होता है।

6 :- शुक्र नीच राशि के हों तो जातक की स्त्री मरै, शीलरहित स्वतंत्र विचरण करने वाला होता है। इसी प्रकार जातक यदि स्त्री हो तो पति मरण व स्वतंत्र विचरण करने वाली जातिका होती है।

7 :- शनि नीच राशि के हों तो जातक दृष्टिमान्ध्य काना, दरिद्री हो, आचार रहित, अत्यंत निंदित होता है। इसी प्रकार ग्रहों के अपनें घर / स्वगृही होने के फल भी जातक के लिए बताये गए हैं जैसे :-

जन्म कुंडली में जातक के लिए ग्रहों के स्वगृही होनें का फल :-

स्वगृहस्थे रवौ लोके महोग्रश्च महोद्यमी ।। चन्द्रे धर्मरतः साधुर्मनस्वी रूपवानपि ॥ स्वगृहस्थे कुजे मल्लो धनवानपराजितः ।। बुधे नानाकलाभिज्ञः पंडितो धनवान्नरः ।॥ धनी काव्यश्रुतिज्ञश्च सुचेष्टः स्वगृहे गुरौ ।। स्फीतः कृषी-
वलः शुक्रे शनौ मान्यः खलो नर : ।।

अर्थात :-
जातक के जन्म कुंडली मे यदि सूर्य अपने घर में बैठें हों तो जातक स्वभावतः लोक में महाउग्र, महाउद्यमी होत है। चंद्रमा स्वगृही हों तो धर्म में रत, साधु, मनस्वी, जातक रूपवान् होता हैं। मंगल स्वगृही हों तो जातक मल्ल, धनवान्, अपराजित (नहीं हारनेवाला) होत है। बुध स्वगृही हों तो जातक अनेंक कला जानने वाला, धनवान्, पंडित जन होता है। बृहस्पति स्वगृही हों तो जातक धनी, कवि, वेदवेत्ता, सुंदर चेष्टावाला होता है। शुक्र स्वगृही हो तो जातक उज्ज्वल स्वरूपवाला कृषि वाला (खेती करनेवाला) होता है। यदि शनि जन्म कुंडली में स्वगृही (अपनें घर में) हो तो जातक मान्य, दुष्टजन होता है। इसी प्रकार जन्म कुंडली मे ग्रहों के स्वभाव आदि के कारण शत्रुता व मित्रता भी होती है।

आइये जानते हैं कि जातक के लिए किस ग्रहों के स्वभाव के कारण मित्रता व शत्रुता से जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है जैसे :-

सभी ग्रहों का अपनें मित्र के घर में रहनें का फल :-

सूर्ये मित्रगृहे ख्यातः शास्त्रज्ञः स्थिरसौहृदः ।। चंद्रे नरो भाग्ययुक्तश्चतुरो धनवानपि ॥ भौमे शस्त्रोपजीवी च बुधे रूपधनान्वितः ।। गुरौ मित्रगृहे पूज्यः सतां सत्कर्मसंयुतः ।। शुक्रे मित्रगृहे लोके धनी बंधुजनप्रियः ।। शनौ परान्नभोजी च कुकर्मनिरतो नरः ॥

अर्थात :-
जन्म कुंडली मे यदि सूर्य मित्र के घर में हों तो प्रसिद्ध, शास्त्रज्ञ, स्थिर मित्रता वाला जातक होता है। चंद्रमा मित्र के घर में हों तो जतक भाग्ययुक्त, चतुर, धनवान् होत है। मंगल मित्र के घर में हों तो जातक शस्त्र की आजीविका वाला जातक होता है। बुध मित्र के घर में हों तो जातक रूप धन से युक्त होता है। बृहस्पति मित्र के घर में हों तो जातक श्रेष्ठ जनों का पूज्य, शुभ कर्म करने वाला होता है। शुक्र मित्र के घर में हों जातक लोक में धनी, बंधुजनों का प्रिय होता है। शनि मित्र के घर में हों तो जातक पराये अन्न को भोजन करने वाला, कुकर्मी जन होता है।

सभी ग्रहों का अपनें शत्रु के घर में रहनें का फल :-

अथ शत्रुगृहस्थग्रहफलम् सूयें रिपुगृहे निःस्वो विषयैः पीडितो नरः ।। चंद्र हृदययोगी च भौमे जायाजडोऽधनः ।। बुधे रिपुगृहे मूखों वाग्धनो दुःखपीडितः ।। जीबेरिभे नरः क्लीबो नाप्त- वृत्तिर्बुमुक्षितः ।। शुक्रे शत्रुगृहे मृत्यः कुबुद्धिर्दुःखितो नरः ।। शनौ व्याध्यर्ष- शोकेन संतप्तो मलिनो भवेत् ।।

अर्थात :-
सभी ग्रहों के राजा सूर्य यदि जातक के कुंडली मे शत्रु के घर में हो तो जातक दरिद्री, विषयों से पीडित जन होता है। चंद्रमा शत्रु के घर हों तो जातक हृदय रोग वाला होता है। मंगल शत्रु के घर में हों तो जातक मूर्खस्त्रीवाला, निर्धन होता है। बुध शत्रु के घर में हो तो जातक मूर्ख, बातों का ही धनवाला दुःखी होता है। बृहस्पति शत्रु के घर में हों तो जातक नपुंसक होता है, आजीविका विहीन बुभुक्षित होता है। शुक्र शत्रु के घर में हों तो जातक भृत्य, कुबुद्धी दुःखी, जन जातक होता है इसी प्रकार यदि जन्म कुंडली मे शनि शत्रु के घर में हों तो जातक रोगी और धन के शोक से दुःखी और मलिन होता है।

लेखक-
वैद्य पं0 योगेश देव पाण्डेय (ज्योतिषाचार्य )
(नाड़ी एवं वनौषधियोग ज्योतिष चिकित्सा विशेषज्ञ)
वनौषधि पर आधारित उद्यमिता विकास / फॉरेन ट्रेड मेनेजमेंट / ई -बिजनेस प्र0 – सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ( एम एस एम ई ) भारत सरकार।
नोट:- लेखक जनपद मीरजापुर समान्नित प्राचीन वैद्य परिवार का सदस्य है। अपनें अध्ययन व नाड़ी के द्वारा रोग निदान का पैतृक अनुभव ज्ञान से और ज्योतिषचिकित्सा (मेडिकल एस्ट्रोलोजी) आयुर्वेद वनौषधियों के द्वारा घरेलू उपचार का ज्ञान / विशेषज्ञता रखता है, इन विषयों का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ( वाराणसी ) का भी छात्र रहा है।
अवैतनिक जन-हित मे समर्पित है एवं परामर्श हेतु निःशुल्क सेवा प्रदायक है।

( यहाँ पर हमारा उद्देश्य मात्र विलुप्त हो रही ज्योतिष वास्तुशास्त्र एवं सम्बन्धित प्राचीन संहिता ग्रन्थों आयुर्वेद इत्यादि में वर्णित रहस्यात्मक गुप्त ज्ञान के अनुसार ज्योतिष चिकित्सा पद्धति के द्वारा जन्म कुण्डली में ग्रहों के आधार पर विभिन्न असाध्य रोगों के सरल उपाय व प्राकृतिक उपचार परामर्श एवं जनहित में आपके लिए जानकारी उपलब्ध कराना एक मात्र उद्देश्य है )

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