मिर्जापुर – हमारे भारत देश में कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं और उनमे हर किसी त्यौहार का अपना अपना एक अलग महत्व होता है। इसी में एक त्यौहार होता है हरियाली तीज का जो महिलाओं के द्वारा बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वैसे तो साल में तीन बार तीज का त्यौहार आता है। लेकिन उसमे से इस हरितालिका तीज का महत्व सबसे अधिक है। बाकि दोनों तीज को हरतालिका तीज व कजरी तीज के नाम से जाना जाता है। हरितालिका को तीज या तीजा भी कहते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सुहागिन स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं। ज्यादातर यह त्यौहार उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला यह त्योहार करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चन्द्र देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जला व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजा के पश्चात ही व्रत सम्पन्न किया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह भी है की इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए और अविवाहित युवतियां मन अनुसार वर पाने के लिए तीज का व्रत करती हैं। सबसे पहले इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजा के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।
इस व्रत को कुमारी कन्याएँ व सुहागिन महिलाएँ दोनों ही कर सकती हैं परन्तु एक बार व्रत रखने बाद जीवन भर इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रत करने वाली महिला गंभीर रोगी स्थिति में है तो उसके स्थान पर दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकते है।

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