विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के आह्वान पर लगातार 110 वें दिन प्रदेश भर में बिजली कर्मचारियों ने सभी जनपदों परियोजनाओं और राजधानी लखनऊ विरोध प्रदर्शन जारी रखा। संघर्ष समिति ने आरोप लगाया है कि कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट (हितों के टकराव) के प्राविधान को हटाकर निजीकरण हेतु ट्रांजैक्शन कंसलटेंट की बिडिंग कराई गई है। ध्यान रहे कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति के आरएफपी डॉक्यूमेंट में पहले हितों के टकराव का प्राविधान था । यदि यह पहले था तो इसे क्यों हटाया गया है ? इसके पीछे साफ तौर पर भ्रष्टाचार का संकेत मिल रहा है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि जानकारी मिली है कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति हेतु अर्नेस्ट एंड यंग, ग्रैंड थ्रामटन और डेलॉइट कम्पनी ने बीड डाली है। पारदर्शिता का तकाजा यह है कि पावर कार्पोरेशन प्रबंधन को स्पष्ट करना चाहिए कि यह तीनों कंपनियां बिजली के मामले में कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के दायरे में आती है या नहीं। उन्होंने कहा कि यदि यह कंपनियां कनफ्लिक्ट आफ इंटरेस्ट के दायरे में आती है तो उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति की उत्तर प्रदेश में ही बिजली के निजीकरण में धज्जियां उड़ाई जा रही है। यह बहुत गंभीर मामला है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि ऐसे कई संकेत मिल रहे हैं जिनसे प्रतीत होता है कि बिजली के निजीकरण के नाम पर मेगा घोटाला होने जा रहा है। चार बिंदु बहुत महत्वपूर्ण है। पहला बिंदु कनफ्लिक्ट का इंटरेस्ट का है। दूसरा बिंदु यह है कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की 42 जनपदों की परिसंपत्तियों का निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के पहले कोई मूल्यांकन क्यों नहीं किया गया है ? तीसरा बिंदु यह है कि 42 जनपदों के बिजली वितरण का रेवेन्यू पोटेंशियल सार्वजनिक किए बिना किस आधार पर निजीकरण किया जा रहा है चौथा बिंदु यह है कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के राजस्व का बकाया 66000 करोड़ रुपए है। यदि इसे वसूल लिया जाए तो पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की कंपनियां मुनाफे में आ जाएंगी । इस प्रकार राजस्व वसूली के बाद मुनाफे में आ जाने वाली विद्युत वितरण कंपनियों का निजीकरण क्यों किया जा रहा है संघर्ष समिति ने कहा कि 15 साल पहले जब आगरा की बिजली व्यवस्था निजी कंपनी टोरेंट पावर कंपनी को दी गई थी तब 2200 करोड का राजस्व का बकाया था । समझौते के तहत यह बकाया टोरेंट कंपनी को वसूल करके पॉवर कॉरपोरेशन को वापस करना था और पावर कॉरपोरेशन टोरेंट कंपनी को इसके ऐवज में 10% इंसेंटिव के रूप में देती। आज 15 साल गुजर गए हैं । इस बकाए का एक भी पैसा टोरेंट कंपनी ने वापस नहीं किया। इससे ऐसा लगता है कि पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के पीछे 66000 करोड रुपए का बकाया राजस्व निजी कंपनियों के लिए बहुत बड़े आकर्षण का मुद्दा है। संघर्ष समिति ने कहा कि ऐसे कई और मुद्दे हैं जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के पीछे बहुत बड़ा भ्रष्टाचार होने जा रहा है। विरोध सभा वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज, मीरजापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, ओबरा, पिपरी और अनपरा में हुई। विरोध सभा में दीपक सिंह अंशु कुमार पांडे दिनेश कुमार मिश्रा रासबिहारी मौर्या विनोद कुमार बृजेश कुमार राजेश कुमार गौतम राम जन्म दीपक कुमार आदि मौजूद रहे।

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