मीरजापुर – मिर्जापुर के प्रत्येक घाटों में छठ पूजा के लिए महिलाओं की भीड़ देखने को मिली कहा जाता है कि छठ पूजा अपने बच्चों के सुख समृद्धि के लिए की जाती है पूजा करने आई चंद्रावती देवी ने बताया कि
छठ पूजा एक प्राचीन और पावन पर्व है जो सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का दिन है। इस पर्व को चार दिनों तक मनाया जाता है जिनमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य शामिल हैं। इस पर्व को मनाने के लिए कुछ विशेष नियम और विधि का पालन करना होता है।
वाराणसी से आये ममता गुप्ता ने बताया कि यह छठ मे व्रती को सुबह उठकर गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना होता है। इसके बाद व्रती को अपने घर को साफ-सुथरा करना होता है और घर के चारों ओर गोबर लगाना होता है। इस दिन व्रती को चावल, दाल, लौकी, कद्दू और चने की दाल का भोजन करना होता है व्रती को नमक, प्याज, लहसुन, अदरक और हल्दी से परहेज करना होता है
गुंजन गुप्ता ने कहा कि व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। व्रती को सूर्यास्त के समय खरना बनाना होता है। खरना एक प्रकार का हलवा होता है जो चावल के आटे, घी, गुड़ और दूध से बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए चावल के आटे को घी में भूना जाता है और फिर उसमें गुड़ और दूध मिलाकर पकाया जाता है। इसे बनाने के लिए किसी भी प्रकार का नमक या मसाला नहीं डाला जाता है। इस दिन व्रती को खरना अपने परिवार और पड़ोसियों के साथ बांटना होता है।

संगीता ने कहा कि व्रती को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना होता है। इस दिन व्रती को अपने घर से छठ घाट तक पैदल चलना होता है। इस दिन व्रती को बांस या पीतल की टोकरी या सूप लेकर जाना होता है। इसमें फल, फूल, गन्ने, पकवान, थेवा, थेकुआ, खजूर, नारियल, अक्षत, सिंदूर, धूप, दीप, थाली, लोटा, नए वस्त्र, नारियल पानी भरा, अदरक का हरा पौधा आदि रखना होता है। इसके बाद व्रती को घाट पर पहुंचकर स्नान करना होता है और फिर अस्ताचलगामी सूर्य को पूरी निष्ठा के साथ अर्घ्य देना होता है। इस दिन व्रती को अर्घ्य देते समय छठी मैया की आरती और भजन गाना होता है तथा प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना होता है। इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठना होता है और फिर घाट पर पहुंचकर उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना होता है।

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